Monday 23 January 2017

BOOK Review- H.R.Diaries by Harminder Singh





कुछ नौजवान जिन्होंने नयी दुनिया में कदम रखा, उलझ गये दौड़-भाग के पाटो में। जिंदगी की पेचीदगियों को उन्होंने अपनी तरह से हल करने की कोशिश की, अनेक रोचक मोड़ आते गये , वे हँसे, रोये, घबराये लेकिन रुके नहीं। आखिर में उन्होंने पाया की नौकरी करना कोई बच्चों का खेल नहीं! उनकी जिन्दगी का एक हिस्सा उनसे हर बार सवाल करता है की यह दौड़ यूँ ही क्यों चल रही है? हमें क्यों लगता है की हम एक जगह बंधे हुए है? क्या यह हमारी नियति है?”

यह चन्द पन्कतियां हरमिन्दर सिंह की लिखी पुस्तक एच. आर. डाईरीज मूल तत्व है. लेखक का दावा है कि ये कथानक काल्पनिक है. परन्तु समझने  वाले समझ जाते है कि हरेक कहानि, द्रुश्यपट तथा विभिन्र कलाकार व सम्बाद लेखक कि अपनि अनुभुति है.

मेरा विश्वास है कि हर ख्यण हम किसि ना किसि कहानी कि अग्ं वनते रहते है परन्तु उसे सामान्य बिषय मानके हम भुल भि जाते है. हरमिन्दर जी ने लेकिन हर छोटा बडा घटनाओँ को अपनि द्रुष्टीकोण से विश्लेषण किया . जोभि उन्हे तर्क संगत लगा उन्होने उसे वाख्या कि.

उन्होने जिस तरह से इक रोज़मर्रा की दफ्तर वाली ज़िन्दगी को इस किताब के ज़रिये दर्शाने की कोशिश की है वह वाकई में काबिल तारीफ़ है। इसका एक एक विषय हमेशा याद दिलाता है उन दिनों की जब हमने पहली बार नौकिरी करने के लिए किसी दफ्तर केअंदर गए थे। किस तरह परिस्थितीयों का सामना किया। नयी नयी चुनोतियों को कैसे अपनेतरीके से सुलझाने की कोशिश की और निरंतर गिरते रहे उठते रहे मगर चलते रहे। यहपुस्तक हमें उन यादों से जुडी हुई सिख दिलाने में प्रेरित करती हैं।आपका यह पुस्तक पढ़के मैं काफी प्रवाबित हुआ हूं, और आशा करता हूँ की यह उन तमाम युवा पीढ़ी को भी अपने ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी।


हो सक्ता है कि आप यह आकलन से असहमत भि हो मगर आप को उनकि वर्णन शैली को दाद अवश्य देगें. पढते पढते आप किसि चरित्र मे अपने आपको ढुन्ड लेगें. यहि मजा है जव आप वास्तव कहानिओँ के रुवरु होते है.

ये तो मानना पडेगा कि मानव स्ंसाधन विभाग वह विभाग है जहां से नौजवानों का स्वप्न शुरु होते है. सवको  कुछ ना कुछ अभिग्ङता है, लेकिन एक अलग द्रुष्टीकोण से रचित यह उपन्यास सभि श्रेणी के लिये पठनीय है.

यह पुस्तक हरमिन्दर जी कि प्रथम रचना है और Blogadda.com कि ब्लागर्स टु आँथर्सयोजना के अन्तर्गत प्रकाशित हुई है.

मेरा आकलन - 4/5